Wednesday, December 23, 2009

Compulsory voting bill - Controversial, Impractical, Dangerous law ?

Ignore my apprentice mind or my (lack of) understanding of polity, if you think the title of this post is not consistent. But my friends, this is how it is being reported in the media - 
•    NDTV reported narendra modi defends vote or face action law - The latest controversy surrounding Narendra Modi is his decision to make voting mandatory for local body elections.
•    DNA called it a Dangerous Law in its editorial

And what does the leader amongst Indian news channels - TimesNow had to ask Mr Narendra Modi(or NAMO) on this - "Why are you so keen on making voting compulsory?"

   For those who are still puzzled and can't see what this is about - here is the news. Gujarat legislative assembly has passed a bill with unanimous vote to make voting compulsory for all local body elections. So all muncipal elections, zila parishad, panchayat elections in Gujrat will be elected by most of Gujratis, if everything goes to plan. Why? Because everyone has to vote, if you don't you will be served notice and will need to give explanation. Off course people may still not vote for valid reasons like illness, out of town etc. And before you ask further, there is an option to reject all candidates. For the first time, people will get the chance to vent their anger through voting and not just choose best among the worst.

   But what is so controversial about it? My apprentice mind has been failing to find the answer to this.
   And Impractical? This could be a valid point, as this has not been tested. But is our media analysing the fine prints raising relevant issues or is it easy (takes little effort) to behave like oppostion parties and say NO NO NO to everything, what NAMO does.

   When this was brought to parliament four years back to make a law, it was rejected. The house was then told that the Dinesh Goswami Committee, which went into matters relating to electoral reforms, had studied the issue and rejected it due to "practical difficulties".

   Interestingly, the response of Election commission themselves is much better than the naysayers. “The issue of compulsory voting has multiple dimensions, and it’s for Parliament to legislate on this. As for the Election Commission, we think it’s not practical to enforce 815 million-odd voters in a country as large as ours to compulsorily vote. Having said that, we would watch the Gujarat initiative with interest,” Chief Election Commissioner Navin B Chawla said.

   What is most pleasing is the response of the general public. Some excerpts
•     There are lot of things in the Indian democracy that are mandatory. The democracy is not perfect but it's at its best when everyone counts and not just a few. Why not make tax returns optional? How does that sounds? Voting in national elections is just once every five years and the compulsory taxes filings are every year? Why cannot this be beneficial? - Maulesh, New York

•     What the heck? Dangerous law? Let the people decide... making democracy strong means dangerous? What is your problem? - Kalpesh, Surat

•     It is very practical provided our political leaders have the will power to implement as they never wanted that Educated people should come out and vote? However since it is proposed by Modi it's not practical? However if the idea was originated from Rahul Gandhi then it was an excellent idea and was practical? Lets give up biased approaches. A good idea is a good idea irrespective of a person who advocates it. - Anurag, New Delhi.

   I can only smile at these childish moaners  - it's a shame and unfortunate for India that these moaners are big influential media houses.
   To me, it is a welcome step in more than one respect, most important being - Any policy should be created for the benefit of majority and not to satisfy targetted few, as has been the case in the history of free India. This bill takes the first step towards reaching there.
  
   Let's give Modi a fair chance, if we cannot encourage, to attempt what has never been done. Let's criticize him for the gaps and shortcomings rather than blindly using any adjectives we are aware of.

Friday, December 18, 2009

Sachin boodha ho gaya hai

Abhi : kya bhai sahab kya haal chaal?

me: badhiya hai yaar

tu bol

Abhi : mast

weeeeeeeeeeeeekkkkends

me: haa bhai

Abhi : dilshan india ki maa behen eik kar raha hai

me: uski aisi ki taisi

5 over mein 30 run

thik hi hain

me: bhai ab shuru hui

sach mein

Abhi: aise hi thukaai honi chahiye

me: abe saale

Abhi : kyu be

jab tak sachin ko khilayenge ...aisa hi hoga

me: ha ha

kyon sachin bowling kar raha hai kya

Abhi : bowling nahi

par ab woh bahut boodha ho gaya hai

usse retire ho jaana chhahiye

me:
abe saale

tujhe uski

safed daadhi dikh rahi hai kya

Abhi : usne aaj 52 balls mein 40 runs banaye

me: ya log use kandhe pe utha ke chalte hain

43/53 balls

52 balls

Abhi : same thing

me: to kya ho gaya bhai

Abhi: where is consistency

me: in?

Abhi: eik inning khel di 175 ki

aur phir 10 series ke liye andar

me: achchha

to kitne banane chahiye har match mein use

me: last match mein bhi 69 out of 63

Abhi : yaar last match mein kya kiya thaa it is immaterial

sawaal yeh hai ki is match mein kya kiya?

me:
he he..to consistency??

Abhi : i m public

i m supposed to change my stand wenever i like

Thursday, December 17, 2009

चूहा और मैं

   (यह लघु कथा हरिशंकर परसाई की सर्वश्रेष्ठ व्यंग्य रचनाओं में से उद्धृत की गयी हैं. मैं कुछ समय से यह बात कहना चाहता था पर संयोग कि यह कहानी मिल गई और मेरा काम आसान हो गया. परसाई जी कि कहानी आज भी उतनी ही सच है, जितनी ३०-४० वर्ष पहले.)


ह कहानी स्टीन बेक के लघु उपन्यास 'Of Man and Mouse' से अलग है. 
   चाहता तो लेख का शीर्षक 'मैं और चूहा' रख सकता था. पर मेरा अहंकार उस चूहे ने नीचा कर दिया है. जो मैं नहीं कर सकता, वह यह मेरे घर का चूहा कर लेता है. जो इस देश का सामान्य आदमी नहीं कर पाता, वह इस चूहे ने मेरे साथ कर के बता दिया. 
   इस घर में एक मोटा चूहा है. जब छोटे भाई कि पत्नी थी, तब घर में खाना बनता था. इस बीच पारिवारिक दुर्घटनाओं - बहनोई कि मृत्यु आदि - के कारण हम लोग बाहर रहे. 
   इस चूहे ने अपना यह अधिकार मान लिया था कि मुझे खाने को इसी घर में मिलेगा. ऐसा अधिकार आदमी भी अभी तक नहीं मान पाया, चूहे ने मान लिया है. 
   लगभग पैंतालिस दिन घर बंद रहा. मैं जब अकेला लौटा, और घर खोला, तो देखा कि चूहे ने काफी 'Crockery' फर्श पर गिरा कर फोड़ डाली है. वह खाने कि तलाश में भड़भडाता होगा. क्रोकरी और डब्बों में खाना तलाशता होगा. उसे खाना नहीं मिला होगा, तो वह पड़ोस में कहीं कुछ खा लेता होगा और जीवित रहता होगा. पर घर उसने नहीं छोड़ा. उसने इसी घर को अपना घर मान लिया था. 
   जब मैं घर में घुसा, बिजली जलाई, तो मैंने देखा कि वह ख़ुशी से चहकता हुआ यहाँ से वहां दौड़ रहा है. वह शायद समझ गया कि अब इस घर में खाना बनेगा, डब्बे खुलेंगे और उसकी खुराक उसे मिलेगी. 
   दिन भर वह आनंद से सारे घर में घूमता रहा. मैं देख रहा था. उसके उल्लास से मुझे अच्छा ही लगा. 
   पर घर में खाना बनना शुरू नहीं हुआ. अकेला था. बहन के यहाँ जो पास में ही रहती है, दोपहर को भोजन कर लेता. रात को देर से खाना खाता हूँ, सो बहन डब्बा भेज देती रही. खा कर में डब्बा बंद कर के रख देता. चूहाराम निराश हो रहे थे. सोचते होंगे, यह कैसा घर है. आदमी आ गया है. रौशनी भी है. पर खाना नहीं बनता. खाना बनता तो कुछ बिखरे दाने या रोटी के टुकड़े उन्हें मिल जाते. 
   अब मुझे एक नया अनुभव हुआ. रात को चूहा बार बार आता और सिर की तरफ मच्छरदानी पर चढ़ कर कुलबुलाता. रात में कई बार मेरी नींद टूटती. मैं उसे भगाता. पर थोड़ी देर बाद वह फिर आ जाता और मेरे सर के पास हलचल करने लगता. 
   वह भूखा था . मगर उसे सिर और पाँव कि समझ कैसे आई? वह मेरे पांवों कि तरफ गड़बड़ नहीं करता था. सीधे सिर की तरफ आता और हलचल करने लगता. एक दिन वह मच्छरदानी में घुस गया. 
   मैं बड़ा परेशान. क्या करूं? इसे मारूं और यह किसी अलमारी के नीचे मर गया, तो सड़ेगा और सारा घर दुर्गन्ध से भर जाएगा. फिर भारी अलमारी हटा कर इसे निकालना पड़ेगा. 
   चूहा दिन भर भड़भडाता और रात को मुझे तंग करता रहा. मुझे नींद आती, मगर चूहाराम फिर मेरे सिर के पास भड़भड़ाने लगते.
   आखिर एक दिन मुझे समझ में आया कि चूहे को खाना चाहिए. उसने इस घर को अपना घर मान लिया है. वह चूहे के अधिकारों के प्रति सचेत है. वह रात को मेरे सिरहाने आ कर शायद यह कहता है, 'क्यों बे, तू आ गया है. भर पेट खा रहा है. मगर में भूखा मर रहा हूँ. मैं इस घर का सदस्य हूँ. मेरा भी हक है. मैं तेरी नींद हराम कर दूंगा.'
   तब मैंने उसकी मांग पूरी करने कि तरकीब निकाली.
   रात को मैंने भोजन का डब्बा खोला, तो पापड के कुछ टुकड़े यहाँ वहां डाल दिए. चूहा कहीं से निकला और एक टुकड़ा उठा कर अलमारी के नीचे बैठ कर खाने लगा. भोजन पूरा करने के बाद मैंने रोटी के कुछ टुकड़े फर्श पर बिखरा दिए. सुबह देखा कि वह सब खा गया है.
   एक दिन बहन ने चावल के पापड भेजे. मैंने तीन चार टुकड़े फर्श पर डाल दिए. चूहा आया, सूंघा और लौट गया. उसे चावल-पापड पसंद नहीं. मैं चूहे कि पसंद से चमत्कृत रह गया. मैंने रोटी के कुछ टुकड़े डाल दिए. वह एक के बाद एक टुकड़ा ले कर जाने लगा.
   अब यह रोजमर्रा का काम हो गया. मैं डब्बा खोलता, तो चूहा निकल कर देखने लगता. मैं एक-दो टुकड़े डाल देता. वह उठा कर ले जाता. पर इतने से उसकी भूख शांत नहीं होती थी. मैं भोजन कर के रोटी के टुकड़े फर्श पर डाल देता. वह रात को उन्हें खा लेता और सो जाता.
   इधर मैं भी चैन कि नींद सोता. चूहा मेरे सिर के पास गड़बड़ नहीं करता.
   फिर वह कहीं से अपने एक भाई को ले आया. कहा होगा, 'चल रे मेरे साथ उस घर में. मैंने उस रोटी वाले को तंग कर के, डरा के, खाना निकलवा लिया है. चल, दोनों खायेंगे. उसका बाप हमें खाने को देगा, वरना हम उसकी नींद हराम कर देंगे. हमारा हक है.'
   अब दोनों चूहाराम मज़े में खा रहे हैं.
   मगर मैं सोचता हूँ, 'आदमी क्या चूहे से भी बदतर हो गया है? चूहा तो अपनी रोटी के हक के लिए मेरे सिर पर चढ़ जाता है. मेरी नींद हराम कर देता है !
   इस देश का आदमी कब चूहे कि तरह करेगा ?'

Monday, December 14, 2009

हनुमान जी अदालत में

   राम ने पवनसुत हनुमान को बहुत समझाया की तुम यहीं सुग्रीव के पास रहो। किसी सुंदरी वानरी से विवाह करो।अयोध्या में तुम्हे अच्छा नहीं लगेगा। पर हनुमान ने राम के चरणों पर मस्तक रख दिया और कहा, "मैं इन चरणों से दूर नहीं रह सकता।"
   मजबूर हो कर राम उन्हें अयोध्या ले आए। वे वहां आराम से रहने लगे।
    राम के मुंह लगे होने के कारण वे पुलिस की नज़रों में खटकने लगे। हनुमान जी अपने को सुपर पुलिस समझते थे।इंस्पेक्टर जेनरल के दफ्तर में घुस जाते और डांटते, "इतनी चोरियां अयोध्या में हो रही हैं और तुम कुछ नहीं करते। तुम सब घूसखोर हो। एक एक को ठीक करूँगा।"
   पुलिस के लोगों ने सोचा की इसे एकाध पुलिस का रगदा दिए बिना यह ठीक नहीं होगा।
   संयोग कि कुछ दिनों के लिए राम अयोध्या के बाहर थे। उसी समय एक स्त्री के हार की चोरी हो गई। हार बरामद हो गया, पर पुलिस ने जा कर पकड़ लिया हनुमान जी को।
   हनुमान जी ने पूछा, "थाने क्यों चलूँ?"
   पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, "चोरी के इल्जाम में। तुमने सुकेशी का हार चुराया है।"
   हनुमान जी बोले, "अरे मूर्ख, मुझे सोना ही चाहिए होता लो क्या मैं सोने कि लंका से उठा कर नहीं ला सकता था? खैर, मैं डरता नहीं हूँ। चलो थाने। प्रभु के आने पर तुम सबको 'डिसमिस' करा दूंगा।"
   हनुमान जी गिरफ्तार हो गए। एक नागरिक ने उनकी जमानत ली, तब वे हवालात से रिहा हुए।
   अब वे अकड़े अकड़े फिरते और कहते, "जिसने लंका में आग लगायी वह अयोध्या भी फूंक सकता है।"
   पर राम के लौटने से पहले ही पुलिस ने जुर्म कायम करके केस अदालत में पेश कर दिया। पेशी कि तारीख तय हो गई।
   हनुमान सीता के पास गए। चरण छू कर बोले, " माता, इस पुलिस ने मुझे झूठा फंसा दिया। आप कुछ मेरी सहायता कीजिये न !"
   सीता ने कहा, " देखो हनुमान, रानी का कोई वैधानिक अधिकार नहीं होता। वे बाहर गए हैं। वे लौटें, तभी कुछ हो सकता है।"    
   हनुमान ने गिडगिडा कर कहा, "मैंने आपकी कितनी सेवा की है। क्या आप इस दास को छुड़ा नहीं सकतीं ?"
   सीता ने कहा, "मैंने कहा न, कि मेरे हाथ में कोई अधिकार नहीं है। हमने तुमसे कहा था न कि किष्किन्धा में ही रहो। घर बसाओ। पर तुम माने नहीं।"
   हनुमान निराश हो कर लौट आए, पर उन्हें अपने बल पर विश्वास था। सोचते थे, कौन मुझे दंड देगा ? मैं उसे पछाड़ दूंगा। अदालत को प्रहारों से तोड़ डालूँगा। 
   पेशी के पहले राम आ गए। हनुमान उनके पास पहुंचे। हाथ जोड़ कर कहा, " प्रभु, आप तो बाहर चले गए थे और इधर पुलिस ने मुझे झूठे मामले में फंसा लिया। कहते हैं की तुमने सुकेशी का हार चुरा लिया। भला मैं क्यों हार चुराऊंगा ? परम वीर हनुमान क्या चोरी करेगा ?"
   राम ने कहा, " मैं जानता हूँ, तुम चोरी नहीं करोगे।"
   हनुमान ने कहा, " तो मुझे छुड़ाइए न !"
   राम ने कहा, " देखो हनुमान, अब मामला 'सब्जुडिस' है, यानि अदालत में है। अब मैं भी कुछ नहीं कर सकता। अब तो अदालत का फ़ैसला मानना होगा।"
   हनुमान ने कहा, " पर आप राजा हैं। आप सब कुछ कर सकते हैं।"
   राम ने कहा, " नहीं, तुम समझते नहीं हो। न्यायपालिका के मामले में मैं भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता। संविधान है, कानून है, नियम है। तुम एक अच्छा वकील कर लो और मुकदमा लड़ो। छूट जाओगे।"
   हनुमान जी निराश हुए।
   पर उन्हें अपने बल पर विश्वाश था, "मेरा कोई क्या बिगाड़ सकता है ?"
   आख़िर अदालत में पेशी पड़ी। हनुमान कठघरे में बड़ी अकड़ से घुसे। पुलिस के वकील ने जिरह शुरू की।
   वकील ने पूछा, " तुम सुकेशी को जानते हो ?"
   हनुमान जी ने कहा, "मैं नहीं जानता।"
 

फ़िर यों चला:
   "तुम जानते हो। इस हार को पहचानते हो ?"
   " नहीं पहचानता।"
   " नहीं पहचानते ! तुम सुकेशी को पहचानते हो। यह सुकेशी का हार तुमने चुराया ।"
   " न मैं सुकेशी को पहचानता, न मैंने यह हार चुराया। यह सब झूठ है।"
   " तुमने सुकेशी का हार चुराया। अच्छा, इस फोटो को देखो। यह किसका फोटो है ?"
   " मैं नहीं जानता। किसी वानरी का होगा।"
   " यह तुम्हारी प्रेमिका है - सुनैना बानरी !"
   " यह मेरी प्रेमिका नहीं। मेरी कोई प्रेमिका नहीं है।"
   " फ़िर हनुमान थोड़े रूमानी हो गए। पूछने लगे, "कहाँ रहती है ?"
   "वकील ने न्यायाधीश से कहा, " योर ऑनर, देखिये कैसा रूमानी हो गया इस फोटो को देखते ही।"
   फिर वकील ने हनुमान जी से कहा, "मिस्टर हनुमान, I put it to you, की तुमने सुकेशी का हार चुरा कर अपनी प्रेमिका सुनैना को पहना दिया. यह हार उसी सुनैना वानरी के पास से बरामद हुआ है ."

   अब हनुमान जी को बड़ा क्रोध आया, "बोले, वकील के बच्चे, एक झापड़ में तेरी जान ले लूँगा."
   हनुमान जी वकील को मारने झपटे. पर उन्होंने देखा की उनकी भुजा निर्जीव हो गयी है. उठ नहीं रही है. वे लौटे और न्यायाधीश के टेबल पलटने लगे. पर फिर उनके हाथ नहीं उठे.
   वे दोनों हाथ कपाल पर रख कर रो पड़े, " हे भगवान्, यह क्या हो गया है? मेरा हाथ उठता ही नहीं. महाबलशाली पवनसुत हनुमान बलहीन कैसे हो गया! हे प्रभु !"
   न्यायाधीश ने समझाया," महावीर हनुमान जी, यह रणक्षेत्र नहीं है. यह अदालत है. अदालत और वकील के सामने बड़े बड़े बलशाली केंचुए हो जाते हैं. अब कठघरे में सीधे खड़े हो जाओ और सवालों के जवाब दो. "
   पुलिस के वकील ने कहा, "योर ऑनर, यह 'history sheeter' है. इसका रिकॉर्ड देखिये. यह रावण के बगीचे में गैर कानूनी तरीके से घुस गया था. वहां 'फल' लूट कर खाए और बगीचा बर्बाद कर दिया. जो रोकने के लिए आये, उन्हें मार डाला - क्रिमिनल ट्रेसपासिंग, मुर्देर, दफा ३०२...."
   "फिर इसने लंका में आग लगा दी, आर्सन...."
   हनुमान ने कहा, "यह तो मैंने राम और सीता के लिए किया था."
   "जवाब दो, किया था कि नहीं?"
   हनुमान जी ने दीन भाव से कहा, "हाँ किया था. "
   अब हनुमान इस अहसास से की मेरा बल चला गया, इतने घबरा गए की सवालों के अंट शंट जवाब देने लगे. वे पागल जैसे हो गए और फंस गए.
   न्यायाधीश ने उन्हें तीन साल की सज़ा सुना दी. वे जेल चले गए. वहां रोते थे, " हे प्रभु, तुम कहाँ हो? अपने दास की रक्षा क्यों नहीं करते ?"
   राम ने अपने सचिव को जेल भेजा और कहा, "उस हुनमान से मेरे नाम 'Mercy petition' (क्षमा का आवेदन) लिखा लाओ."
   सचिव लिखा लाया और राम ने तुरंत रिहाई का आदेश दे दिया.
   हनुमान बाहर निकले तो सोचा - जरा अपने बल का परीक्षण तो करूँ. उन्होंने पास के झाड को जड़ से उखाड़ दिया. अरे, मेरा बल लौट आया !
   पर दूसरे दिन उन्होंने अपना बिस्तर बाँधा और राम के पास पहुँच कर कहा, " प्रभु, मैं राम-राज समझ कर आ गया था, पर देखता हूँ की राम की कुछ चलती ही नहीं ? अतः अब मैं वापस जा रहा हूँ."
   राम ने कहा, "जाओ, तुम्हें मेरा आशीष है. पर विवाह जरूर कर लेना."
   और हनुमान जी राम-राज से वानर-राज लौट आये.

This is a story by हरिशंकर परसाई, arguably the best satirer of hindi.

Tuesday, December 8, 2009

Arun Shourie on Terrorism

No holy cow for him. This guy doesn't spare anyone including BJP. As he speaks the harsh reality, sarcasm comes naturally. That's the state of India my friends.

See the complete video on http://www.youtube.com/watch?v=rhYxZofizhY&feature=related