बादशाहों की मुअत्तर ख्वाबगाहों में कहाँ वह मज़ा जो भीगी-भीगी घास पर सोने में है,
मुत्मईन बेफिक्र लोगों की हँसी में भी कहाँ लुत्फ़ जो एक दूसरे को देख कर रोने में है|
मकतबे इश्क में इक ढंग निराला देखा उसको छुट्टी न मिली जिसको सबक याद हुआ|
कौन ये ले रहा है अंगडाई आसमानो को भी नींद आती है|
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