Wednesday, May 22, 2019

A mobile cover's musings (एक मोबाइल कवर)

     मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं तुम होते तो हम मुंबई की बारिश देखते - खिड़कियों से नहीं, खुले आसमान के तले | सोचता हूँ तो लगता है जैसे कल ही की तो बात है जब हम मिले थे, आदमी के हिसाब से कुछ महीने, पर मेरे लिए तो जैसे कल ही की बात है| तुम नए चमकते श्याम श्वेत आवरण में आये और सीधे मुझमें समां गए थे. तुमसे पहले मैं किसी और से नहीं मिला था, मेरा रंग भी तब ऐसा पीला न था, कोई भी फ़ोन मुझसे मिलने को तैयार था, पर नियति को मुझे तुमसे ही मिलाना था |
   कहते हैं मैं चीन से हूँ, पर मुझे ये बताये की कौन नहीं है चीन से, मानता हूँ तुम नहीं हो, पर रिश्ता है हमारा बहुत पुराना ही सही| मुझे याद है जब हमारे मिलने के तुरंत बाद ही मालिक ने तुम्हे २ हफ़्तों तक बंद कर दिया था और मैं सांस रोके तुम्हारा इंतज़ार करता रहा | कितने ही हसीन पल हमने साथ काटे | कितनी ही तस्वीरें तुमने मुझमें झाँक के ली थी., मुंबई की बारिश अभी शुरू ही हुई थी जब काले घने बादलों को हमने एक साथ निहारा था और तुमने बिना पलक झपकाए एक के बाद एक कई चित्र ले डाले थे | कहते हैं तुम्हारे मायके में अभी भी वो तस्वीरें हैं| मालिक कभी कभी उनको देखते हैं तो अनंत में निहारते रह जाते हैं, मुझे उनका दुःख देखा नहीं जाता तो मैं भी बच्चो के साथ घर के दुसरे कोने में चला जाता हूँ | 
    बारिश अभी रुकी नहीं है, रह रह के बरसती बूंदे मुझे कंपा जाती है | वो दिन मुझे खूब याद है जब मेरी जगह किसी और को लाकर मालिक फूले न समाते थे, और फिर देखते ही देखते उन्होंने मुझे तुमसे अलग कर दिया | मानता हूँ वो खूबसूरत था पर क्या हुआ वो तुम्हारा ख्याल न रख सका ! मेरे होते मुझे कोई तुमसे जुदा न कर पाता, उस बुरे दिन, जब तुम रिक्शा में रह गए और फिर गलत आदमी के हाथ लग गए मैं हरगिज़ न ऐसा होने देता | सुनता हूँ तुम्हारा अंग भांग कर के, तुम्हारे कितने ही टुकड़े कर दिए गए होंगे, क्योंकि अगर ऐसा न होता तो मालिक तुमको ढूंढ ही लेते। और फिर मैं पास से नहीं दूर से ही सही, तुमको देख पाता, तुम्हारी आवाज़ सुन पाता |
   सच कहूँ - मालिक का तुमसे दिल लग गया था, कितना मानने लगे थे वो तुमको | जब देखो "ओके गूगल " करते , मैं सोचता की ऐसा भी क्या लाड की पहले ही ओके बोल दिया, पहले बात सुनले, समझ ले, फिर ओके बोले| बाद बाद में तो "हे गूगल " बोलने लगे थे | उसके पहले मालिक ने "हे" केवल ईश्वर के पहले ही लगाया था | मैंने कभी नहीं सोचा था की मालिक धर्म बदल लेंगे, शायद ईश्वर की ही सजा है जो तुम्हारा ये हाल हुआ |
पर मुझे तुमसे कोई भी शिकवा नहीं, तुमने अंग दान दिया, भले ही स्वेच्छा से नहीं, पर कितने ही लोगो और मोबाइल का इससे भला होगा | समाज कल्याण में तुम्हारा योगदान सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा | 
   ये सब बाते हैं पर फिर भी मुझे लगता है की तुम किसी भी दिन आ जाओगे और मुझसे गले मिल जाओगे, बिछड़े दोस्तों की तरह | और मैं सोचने लगता हूँ की तुम होते तो ऐसा होता, तुम होते तो वैसा होता | मैं जानता हूँ की तुम नहीं हो कही नहीं हो पर मेरे जहन में लगातार ये बात है की तुम यही हो यही कही हो |

   - एक आम मोबाइल कवर


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