Monday, December 14, 2009

हनुमान जी अदालत में

   राम ने पवनसुत हनुमान को बहुत समझाया की तुम यहीं सुग्रीव के पास रहो। किसी सुंदरी वानरी से विवाह करो।अयोध्या में तुम्हे अच्छा नहीं लगेगा। पर हनुमान ने राम के चरणों पर मस्तक रख दिया और कहा, "मैं इन चरणों से दूर नहीं रह सकता।"
   मजबूर हो कर राम उन्हें अयोध्या ले आए। वे वहां आराम से रहने लगे।
    राम के मुंह लगे होने के कारण वे पुलिस की नज़रों में खटकने लगे। हनुमान जी अपने को सुपर पुलिस समझते थे।इंस्पेक्टर जेनरल के दफ्तर में घुस जाते और डांटते, "इतनी चोरियां अयोध्या में हो रही हैं और तुम कुछ नहीं करते। तुम सब घूसखोर हो। एक एक को ठीक करूँगा।"
   पुलिस के लोगों ने सोचा की इसे एकाध पुलिस का रगदा दिए बिना यह ठीक नहीं होगा।
   संयोग कि कुछ दिनों के लिए राम अयोध्या के बाहर थे। उसी समय एक स्त्री के हार की चोरी हो गई। हार बरामद हो गया, पर पुलिस ने जा कर पकड़ लिया हनुमान जी को।
   हनुमान जी ने पूछा, "थाने क्यों चलूँ?"
   पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, "चोरी के इल्जाम में। तुमने सुकेशी का हार चुराया है।"
   हनुमान जी बोले, "अरे मूर्ख, मुझे सोना ही चाहिए होता लो क्या मैं सोने कि लंका से उठा कर नहीं ला सकता था? खैर, मैं डरता नहीं हूँ। चलो थाने। प्रभु के आने पर तुम सबको 'डिसमिस' करा दूंगा।"
   हनुमान जी गिरफ्तार हो गए। एक नागरिक ने उनकी जमानत ली, तब वे हवालात से रिहा हुए।
   अब वे अकड़े अकड़े फिरते और कहते, "जिसने लंका में आग लगायी वह अयोध्या भी फूंक सकता है।"
   पर राम के लौटने से पहले ही पुलिस ने जुर्म कायम करके केस अदालत में पेश कर दिया। पेशी कि तारीख तय हो गई।
   हनुमान सीता के पास गए। चरण छू कर बोले, " माता, इस पुलिस ने मुझे झूठा फंसा दिया। आप कुछ मेरी सहायता कीजिये न !"
   सीता ने कहा, " देखो हनुमान, रानी का कोई वैधानिक अधिकार नहीं होता। वे बाहर गए हैं। वे लौटें, तभी कुछ हो सकता है।"    
   हनुमान ने गिडगिडा कर कहा, "मैंने आपकी कितनी सेवा की है। क्या आप इस दास को छुड़ा नहीं सकतीं ?"
   सीता ने कहा, "मैंने कहा न, कि मेरे हाथ में कोई अधिकार नहीं है। हमने तुमसे कहा था न कि किष्किन्धा में ही रहो। घर बसाओ। पर तुम माने नहीं।"
   हनुमान निराश हो कर लौट आए, पर उन्हें अपने बल पर विश्वास था। सोचते थे, कौन मुझे दंड देगा ? मैं उसे पछाड़ दूंगा। अदालत को प्रहारों से तोड़ डालूँगा। 
   पेशी के पहले राम आ गए। हनुमान उनके पास पहुंचे। हाथ जोड़ कर कहा, " प्रभु, आप तो बाहर चले गए थे और इधर पुलिस ने मुझे झूठे मामले में फंसा लिया। कहते हैं की तुमने सुकेशी का हार चुरा लिया। भला मैं क्यों हार चुराऊंगा ? परम वीर हनुमान क्या चोरी करेगा ?"
   राम ने कहा, " मैं जानता हूँ, तुम चोरी नहीं करोगे।"
   हनुमान ने कहा, " तो मुझे छुड़ाइए न !"
   राम ने कहा, " देखो हनुमान, अब मामला 'सब्जुडिस' है, यानि अदालत में है। अब मैं भी कुछ नहीं कर सकता। अब तो अदालत का फ़ैसला मानना होगा।"
   हनुमान ने कहा, " पर आप राजा हैं। आप सब कुछ कर सकते हैं।"
   राम ने कहा, " नहीं, तुम समझते नहीं हो। न्यायपालिका के मामले में मैं भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता। संविधान है, कानून है, नियम है। तुम एक अच्छा वकील कर लो और मुकदमा लड़ो। छूट जाओगे।"
   हनुमान जी निराश हुए।
   पर उन्हें अपने बल पर विश्वाश था, "मेरा कोई क्या बिगाड़ सकता है ?"
   आख़िर अदालत में पेशी पड़ी। हनुमान कठघरे में बड़ी अकड़ से घुसे। पुलिस के वकील ने जिरह शुरू की।
   वकील ने पूछा, " तुम सुकेशी को जानते हो ?"
   हनुमान जी ने कहा, "मैं नहीं जानता।"
 

फ़िर यों चला:
   "तुम जानते हो। इस हार को पहचानते हो ?"
   " नहीं पहचानता।"
   " नहीं पहचानते ! तुम सुकेशी को पहचानते हो। यह सुकेशी का हार तुमने चुराया ।"
   " न मैं सुकेशी को पहचानता, न मैंने यह हार चुराया। यह सब झूठ है।"
   " तुमने सुकेशी का हार चुराया। अच्छा, इस फोटो को देखो। यह किसका फोटो है ?"
   " मैं नहीं जानता। किसी वानरी का होगा।"
   " यह तुम्हारी प्रेमिका है - सुनैना बानरी !"
   " यह मेरी प्रेमिका नहीं। मेरी कोई प्रेमिका नहीं है।"
   " फ़िर हनुमान थोड़े रूमानी हो गए। पूछने लगे, "कहाँ रहती है ?"
   "वकील ने न्यायाधीश से कहा, " योर ऑनर, देखिये कैसा रूमानी हो गया इस फोटो को देखते ही।"
   फिर वकील ने हनुमान जी से कहा, "मिस्टर हनुमान, I put it to you, की तुमने सुकेशी का हार चुरा कर अपनी प्रेमिका सुनैना को पहना दिया. यह हार उसी सुनैना वानरी के पास से बरामद हुआ है ."

   अब हनुमान जी को बड़ा क्रोध आया, "बोले, वकील के बच्चे, एक झापड़ में तेरी जान ले लूँगा."
   हनुमान जी वकील को मारने झपटे. पर उन्होंने देखा की उनकी भुजा निर्जीव हो गयी है. उठ नहीं रही है. वे लौटे और न्यायाधीश के टेबल पलटने लगे. पर फिर उनके हाथ नहीं उठे.
   वे दोनों हाथ कपाल पर रख कर रो पड़े, " हे भगवान्, यह क्या हो गया है? मेरा हाथ उठता ही नहीं. महाबलशाली पवनसुत हनुमान बलहीन कैसे हो गया! हे प्रभु !"
   न्यायाधीश ने समझाया," महावीर हनुमान जी, यह रणक्षेत्र नहीं है. यह अदालत है. अदालत और वकील के सामने बड़े बड़े बलशाली केंचुए हो जाते हैं. अब कठघरे में सीधे खड़े हो जाओ और सवालों के जवाब दो. "
   पुलिस के वकील ने कहा, "योर ऑनर, यह 'history sheeter' है. इसका रिकॉर्ड देखिये. यह रावण के बगीचे में गैर कानूनी तरीके से घुस गया था. वहां 'फल' लूट कर खाए और बगीचा बर्बाद कर दिया. जो रोकने के लिए आये, उन्हें मार डाला - क्रिमिनल ट्रेसपासिंग, मुर्देर, दफा ३०२...."
   "फिर इसने लंका में आग लगा दी, आर्सन...."
   हनुमान ने कहा, "यह तो मैंने राम और सीता के लिए किया था."
   "जवाब दो, किया था कि नहीं?"
   हनुमान जी ने दीन भाव से कहा, "हाँ किया था. "
   अब हनुमान इस अहसास से की मेरा बल चला गया, इतने घबरा गए की सवालों के अंट शंट जवाब देने लगे. वे पागल जैसे हो गए और फंस गए.
   न्यायाधीश ने उन्हें तीन साल की सज़ा सुना दी. वे जेल चले गए. वहां रोते थे, " हे प्रभु, तुम कहाँ हो? अपने दास की रक्षा क्यों नहीं करते ?"
   राम ने अपने सचिव को जेल भेजा और कहा, "उस हुनमान से मेरे नाम 'Mercy petition' (क्षमा का आवेदन) लिखा लाओ."
   सचिव लिखा लाया और राम ने तुरंत रिहाई का आदेश दे दिया.
   हनुमान बाहर निकले तो सोचा - जरा अपने बल का परीक्षण तो करूँ. उन्होंने पास के झाड को जड़ से उखाड़ दिया. अरे, मेरा बल लौट आया !
   पर दूसरे दिन उन्होंने अपना बिस्तर बाँधा और राम के पास पहुँच कर कहा, " प्रभु, मैं राम-राज समझ कर आ गया था, पर देखता हूँ की राम की कुछ चलती ही नहीं ? अतः अब मैं वापस जा रहा हूँ."
   राम ने कहा, "जाओ, तुम्हें मेरा आशीष है. पर विवाह जरूर कर लेना."
   और हनुमान जी राम-राज से वानर-राज लौट आये.

This is a story by हरिशंकर परसाई, arguably the best satirer of hindi.

13 comments:

  1. Slightly lengthy but great satire!

    Swagat hai!

    ReplyDelete
  2. स्वागत है जी ! परसाई जी की यह रचना बहुत हीं अच्छी लगी ।

    ReplyDelete
  3. एक वाकया याद आ गया, रावन ने कहा क्या सिगरेट है,

    हनुमान बोले, नही
    तभी मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने सत्य वचन कहे हनुमान झूठ क्यों बोलते हो, एक पैकेट तो है
    हनुमान, प्रभु आप चुप रहिए,

    इस दुष्ट के दस मुंह है, पूरा पैकेट पी जायेगा

    ReplyDelete
  4. Achchhee post.Parasai ji ko fir se padhana achchha laga.shubhakamnayen.
    hemantKumar

    ReplyDelete
  5. स्वागत है आपका.
    निरंतर लिखे और हिंदी चिट्ठाजगत को समृद्ध करें

    ReplyDelete
  6. Thankyou Ajay for your tip and thankyou everyone, I can't believe there are so many Hindi lovers and Parsai ji's fans. I don't know how to comment in HIndi, will soon learn.

    ReplyDelete
  7. kya aap isi prakar kisi sikh guru,muslaman ke pagambar ko kendar me rakh kar likh sakte ho? mere khyal se nahi.agar himmat hai to likh kar dikhao. narayan narayan

    ReplyDelete
  8. Narad ji, pahli baat to yah katha maine nahin likhi..ye to parsai ji ka kamaal hai..
    aur unhone ye ek baar nahin kai baar kiya hai..
    doosri baat, kisi aur paigambar ke liye aisa likhna bahut mushkil hai..shayad asambhav.
    par prabhu hamaare yahan to koi paigambar hai hi nahin..aur hamaari pauranik kathaon mein bhi sabhi guni jan (jismein naarad bhi hain) ke guno ka jo vishleshan kiya gaya hai..aisa aur kahan hai??

    ReplyDelete
  9. कम से कम भगवान् को तो छोड़ दीजिये।क्या आपका हुक्कापानी भगवान् का मजाक बनाकर ही चलता है?आपके अनुसार ये कृति आपकी नहीं है किन्तु आपके पृष्ट पर तो है ।एक भगवान् का उपहास उड़ा रहा है दूसरा साथ दे रहा है।भागीदारी तो दोनों की ही है।नारदमुनि ने सही कहा है की आपमें किसी और धर्म के विरुद्ध लिखने या उस पोस्ट को शेयर करने का साहस नहीं है आप को सिर्फ अपने धर्म में ही कमियां दिखती है किसी और धर्म में नहीं।
    और धन्य हैं वो लोग जो आपको इस कृत्य के लिए उत्साहित कर रहे हैं।

    ReplyDelete